भारत की खोज : जानिए किसने और कब की थी Bharat Ki Khoj
भारत की खोज : चौदहवीं शताब्दी के पूर्व भारत अपने कृषि उत्पादों के लिए विशेषकर इलाइची, कालीमिर्च और दालचीनी जैसे मसालों के लिए अन्य एशियाई देशों के साथ पूरे यूरोपियन देशों में काफी मसहूर था। जिस कारण भारत के साथ सीधे व्यापार करने और अधिक लाभ कमाने हेतु इन देशों मे काफी होड़ मची रहती थी। लेकिन उस समय भारत के साथ व्यापार सिर्फ स्थलीय मार्गों के द्धारा ही संभव था जो काफी महंगा और संघर्ष भरा था। अतः पश्चिमी देशों द्वारा इस महंगे और संघर्षपूर्ण व्यापार मार्ग की समस्याओं को खत्म करने के लिए तथा भारत के साथ सीधे तथा बड़े पैमाने पर व्यापार करने के लिए एक समुद्री मार्ग की खोज की। पश्चिमी देशों द्वारा खोजे गए इसी समुंद्री मार्ग को ही भारत की खोज के नाम से जाना जाता है। अब हमारे मन में यह सवाल आता है कि आखिर यूरोपीयों के लिए किसने की Bharat Ki Khoj थी और कब तथा भारत पर इस खोज का क्या प्रभाव पड़ा? तो चलिए नई उडा़न के आज के इस लेख में हम Bharat Ki Khoj से जुड़ी इन्हीं सभी सवालों पर डालते है एक नजर और जानने की कोशिश करते है कि आखिर समुद्रीय मार्गों से होते हुए यूरोपियन देशों के लिए Bharat Ki Khoj किसने की थी।
आखिर भारत की खोज किसने की थी और कब | kisne ki thi bharat ki khoj
यूरोप से 170 नाविकों के दल के साथ 8 जुलाई 1497 को समुद्र के रास्ते भारत की खोज पर निकला वास्कोडिगामा लगभग दस माह की अपनी कठोर समुद्री यात्राओं के बाद 27 मई 1498 को भारत के दक्षिण पश्चिम में स्थित कालीकट नामक स्थान पर अपना पहला कदम रखते हुए यूरोपियन देशों के लिए भारत की खोज की थी।
पुर्तगाल का रहने वाला था वास्कोडिगामा :
यूरोपियन देशों के लिए समुद्र के रास्ते भारत की खोज करने वाला वास्कोडिगामा एक पुर्तगाली नागरिक था। जिसका जन्म 1460 मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। पिता एस्तेवाओ द गामा की ही तरह यह भी एक समुद्रीय खोजकर्ता था जो समुद्री यात्राओं पर जा रहे जहाजों की कमान सम्भालता था। 24 मई 1524 को उनकी तीसरी भारत यात्रा के बाद मलेरिया के कारण भारत में ही उनकी मृत्यु हो गयी।
मसालों के व्यापार से अधिक लाभ कमाने हेतु पुर्तगाली राजा द्वारा कराया गया था भारत की खोज :
जैसा कि उपर बताया जा चूका है चौदहवीं शताब्दी के पूर्व भारत का व्यापार अन्य देशों के साथ सिर्फ स्थलीय मार्गों के द्धारा ही संभव था जो काफी महंगा और संघर्ष भरा था। लेकिन यूरोप के राजा का यह विचार था कि यदि हम समुद्र के रास्ते भारत जाने वाले किसी समुद्री रास्तों की खोज कर ले तो हम भारत के साथ सीधे व्यापार करके इन भारतीय मसालों से काफी मात्रा में मुनाफा कमा सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए यूरोप के राजा ने समुद्र के रास्ते Bharat Ki Khoj करने के लिए वास्कोडिगामा को चुना। अतः वास्कोडिगामा अपने साथ चार समुद्री जहाजों और 170 नाविकों के एक दल के साथ 8 जुलाई 1497 को समुद्र के रास्ते भारत की खोज पर निकल पड़ा। अन्ततः 27 मई 1498 को वास्कोडिगामा ने अपने सूझबूझ से यूरोप से होते हुए भारत तक एक नये समुद्री मार्ग की खोज की।
यूरोपियन देशों में भारत के साथ सीधे व्यापार के लिए क्यों मची थी इतनी होड़ :
चौदहवीं शताब्दी के पूर्व भारत वाणिज्यिक व्यापार के मामले में इस समय का सुपर पावर अमेरिका से भी ज्यादा विकसित और संपन्न देश था। ऐसा माना जाता था कि उस समय पूरी दुनिया में उत्पादित कुल मसालों का लगभग 45% से भी अधिक का उत्पादन अकेले भारत का होता था। भारत इन उत्पादित मसालों को एशिया के अन्य देशों के साथ ही साथ पूरे यूरोपीय देशों में निर्यात करता था। भारत द्धारा निर्यात किये गये इन मसालों से एशिया के अन्य देशों के साथ ही साथ पूरा यूरोपीय देश खुब लाभ कमाता था।
Bharat Ki Khoj से सम्बंधित गूगल पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल और उसके जवाब
A. एक पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा के द्धारा
A. 27 मई 1498 को
A. भारत के दक्षिण पश्चिम में स्थित कालीकट नामक स्थान पर
A. पुर्तगाल का रहने वाला था वास्कोडिगामा
A. वास्कोडिगामा के द्धारा खोजे गए समुद्रीय रास्तों को मसालों का मार्ग के नाम से जाना जाता है?
A. पुर्तगाल मे
A. तीसरी भारत यात्रा के बाद 24 मई 1524 को मलेरिया के कारण
अन्तिम शब्द :
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